मॉं
मॉं
मॉं के चरणों की रज को पाकर, जीवन धन्य तू अपना बना ले।
पाप तेरे सब धुल जाएंगे, जरूरत नहीं है गंगा जल की।।
चरण धूल जो माथे पर धरते, देवी-देवता भी उसको ही मिलते।
माँ सम है ना दूजा कोई, जो नित करती है तेरे मन की।।
उन को नहीं भाती तेरी रोनी सूरत, कहते उनको ममता की मूरत।
याद सदा वह तुझको करती, जरूरत नहीं कुछ तुझको कहने की।।
माँ शब्द में ही है इतनी शक्ति, नहीं मांगती तुझसे भक्ति।
बिन मांगे ही सब कुछ देती, आदत है उनकी कृपा करने की।।
सामर्थ्य नहीं तुझ में है इतनी, चुका सके जो कर्ज दूध का।
सामर्थ्य फिर भी तुझको है करती, आदत है उनको सहने की।।
माँ की ममता को जिसने है समझा, वह जीवन मुक्त बन जाता है।
सेवा उनकी जो तन-मन से करते, जरूरत नहीं फिर कुछ पाने की।।
साधना तुम माँ की करके देखो, उनके नाम की माला जप लो।
" नीरज, तो अनाथ है तुम बिन, नहीं जरूरत मुझको चार धाम की।।
