मोहन
मोहन
मोहन
बार-बार मैं तुझे बुलाती,
रो-रो कर अपना दुखड़ा सुनाती,
पर , तुम रहते हो मगन,
अधरों से मुरली को लगाए,
देखो, अब ये मुरली मुझे नहीं सुहाती।
लाओ कान्हा, दे दो मुरली,
मैं गाऊँगी...तू सुन लो मेरी ।
तूने बहुत राग अलापे ,
पनघट पर खूब रास रचाये ,
प्रिय, नयनों में अब मुझे बसा लो,
इस दुखिया का क्लेश मिटा दो !
मैं आयी हूँ तेरे द्वारे,
थक गई ..अब लड़ते-लड़ते,
जीवन की मझधार-भंवर से,
अब तो मुझे गले लगा लो मोहन,
मन से मन का तार मिला लो मोहन,
इस मीरा का संताप मिटा दो मोहन।
