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minni mishra

Abstract

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minni mishra

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मोहन

मोहन

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मोहन

बार-बार मैं तुझे बुलाती,

रो-रो कर अपना दुखड़ा सुनाती,

पर , तुम रहते हो मगन,

अधरों से मुरली को लगाए,

देखो, अब ये मुरली मुझे नहीं सुहाती।


लाओ कान्हा, दे दो मुरली,

मैं गाऊँगी...तू सुन लो मेरी ।

तूने बहुत राग अलापे ,

पनघट पर खूब रास रचाये ,

प्रिय, नयनों में अब मुझे बसा लो,

इस दुखिया का क्लेश मिटा दो !


मैं आयी हूँ तेरे द्वारे,

थक गई ..अब लड़ते-लड़ते,

जीवन की मझधार-भंवर से,

अब तो मुझे गले लगा लो मोहन,

मन से मन का तार मिला लो मोहन,

इस मीरा का संताप मिटा दो मोहन।


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