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मनमीत

मनमीत

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मनमीत मेरे ये तुमने कैसा कमाल कर दिया,

गुमसुम सी थी मैं पर तुमने धमाल कर दिया।


खिला कर कमल मेरे गुलशन का अन्जाने में,

गुल ऐ गुलज़ार दर्द ऐ दिल का हाल कर दिया।


जुबां पे छाई थी ख़ामोशी से जो बात अब तक,

कह कर सरेआम बदनाम कर बेहाल कर दिया।


मिलने की बेताबी मे थोड़ा संयम तो रखा होता,

खामोश लबों को छू के ये कैसा सवाल कर दिया।


तुम्हारी हूँ तुम्हारी ही रहूँगी करती हूँ वादा तुमसे,

इश्क नें तेरे “इरा” का यह कैसा हाल कर दिया।


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