मंजिल
मंजिल
अपनी फिक्र को फक्र में बदल देना,
नींद में भी मंजिलें तलाशना,
मां के जगाने से नहीं,
खौंफ से जागना।
अपनी सख्शियत को,
हैसियत में बदल लेना,
जब अपने नाम को
हस्ताक्षर में तबदील कर लेना,
कि तेरे दुश्मन भी तेरा नाम सम्मान से लें,
अरमानों को पंख देकर मुनफ़रिद बन जाना,
नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाना,
तब तू समझ लेना कि वो तू कीमती नगीना है,
जिसने तक़दीर अपने हाथों से लिखा है।
