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suneeta gond

Abstract

4.5  

suneeta gond

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जिन्दा लाश

जिन्दा लाश

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ज़िन्दा लाश बन पड़ी हूं,

तो लाश को लाश ही रहने दो।

खुशियों की तलाश,

को तलाश ही रहने दो।

अब न आना नजदीक मेरे,

मुलाकातों को मुलाकात ही रहने दो।

हलक में फंसी सांस

को सांस ही रहने दो।

जो जिल्लत भरे शब्द 

आश्चर्य में डाल दें।

ऐसे आश्चर्य को आश्चर्य ही रहने दों।

तूझे सूने मकान की चीखों को

बर्दाश्त करने का हौंसल दे

ऐसे तोहफों को खास ही रहने दो

देखना नहीं चाहती

अपनी बद्दुवाओं का असर,

अपनी तड़प को 

अपने पास ही रहने दो

मिसाल बनने की कोशिश में, 

घर फूंक कर जो हाथ सेंक रहे हो,

रूको इंतजार कर लो

ऐसी मिसाल को 

मिसाल तो बनने दो।



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