STORYMIRROR

मंजिल

मंजिल

1 min
303


चलते हैं थकते हैं फिर चलते ही रहते हैं, 

महसूस नहीं कुछ भी कर पाते हैं,

क्योंकि कंधों का वजन थोड़ा भारी है।

तलाशते हैं कोई ऐसी राह मिले,

जिसपर चल कर सुकून-सा महसूस हो।


मगर वो पल अभी दूर ही है शायद,

वक़्त की फरमाइशें भी बहुत खूब हैं,

जो मुश्किल पल होता उसमें ही

सौ इम्तेहान लेना इसे भी मंजूर होता,

कहीं तो वो राह मिले,

वो हमारी मंजिल तक को जाए,

कभी तो आएगा ही वो पल,

जो हमारी तकदीर को बदल जाए।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational