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Kusum Sharma

Abstract

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Kusum Sharma

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मनभावन

मनभावन

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छूकर पवन है जिनको आई

अपने उन मनभावन के

जब भी दिल ये प्रीत करेगा

गीत लिखेगा सावन के


ओ रे काली कोयलिया तू

पीहू पीहू क्यों गाती है

विरहा के गीतों से बैरन

दिल का चैन चुराती है

उनके आने पर जाने पर

अश्रु बाण भेदन करेगा


आयेंगे जब वो सम्मुख तो

दिल मेरा धक धक करेगा


रवि किरण संग चमकी दमकी

फूलों सी इठलाती में

प्रेम बेल बस ऊपर जाती

दुनियाँ को समझाती में

नफरत का उपहास करुँगी

सम्मुख प्यार तभी होगा


फूल फूल उदघोष करेगा

बाग खिलेगा पतझड़ में

जब भी दिल ये प्रीत करेगा

गीत लिखेगा सावन के।


चारों ओर प्यार ही प्यार ,

कोयल के स्वर में

फूलों की महक में

और कुसुम कुंज में

बस प्यार और बहार।


में जीवन के हर रंग

को जी लेती हुँ

कभी आँसू को

ओस बनाकर भी

चख ही लेती हुँ।


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