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Kusum Sharma

Abstract

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Kusum Sharma

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नारी

नारी

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अनकही अनसुनी अनहद सी बातें,

ख्वाबों खयालों की खामोश बातें।

बड़ा दर्द  देती दहकती दिलों में,

वो तड़पाती तरसाती तहरीरी बातें।

 

मिला मन से मन माँग तुमने भरी थी।

अधर पे धरि जो अधर पर धरी थी

नयन से नयन की नयन में कही बात

अजब सी तेरे वो मिलन की घड़ी थी।


विरह में तड़पती कभी उर्मिला बन

कभी मीरा, सीता कभी राधिका अब

राह तकते नयन उस मिलन की घड़ी

अजब बन गई हूँ विरह साधिका जब।


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