मन
मन
मन तो मन है
चाहे मेरा हो
चाहे तेरा हो
कभी चाहत बढ़ाता
कभी राहत दिलाता
कभी उलझन बढ़ाता
कभी राह दिखाता ।।
मिले जब किसी गैर से भी मन
बन जाता दो तन एक मन ।।
भटक जाए जब यह चंचल मन
विलग हो जाता अपना तन-मन ।।
मन से कहो तो फैसले हो जाते हैं
मन में रखो तो फासले हो जाते हैं ।।
मन की रीति मन ही जाने
कब क्यों किसे अपना माने ।।
