मन शुष्क नहीं उष्ण है उनका
मन शुष्क नहीं उष्ण है उनका
उनके चेहरे पर खुशी हौले से मुस्कराती है
दुनिया की दौलत उनके क़दमों में बिछ जाती है
वो आज जीते हैं अपना
उन्हें कल की फिक्र कहां।
प्यासे हों जो वो चेहरे
तो उन्हें देख नदी मुड़ जाती है
भूखे नंगे चेहरों पे कहां टिकता
उनका तो बस रूहानियत से रिश्ता है।
तितलियों सा इतराते, हवाओं में झूलते हैं
अगर वो बोल दें तो सारी
कायनात झुक जाती है
कोई मसीहा न हो भले उनके लिए
रोटी ही उनका मज़हब, ईमान है।
मगर उन चेहरों में बहरूपिए नहीं होते
ग़ज़ब फकीरी ही उनकी शान है
उनकी अल्हड़त पर तो हवा रुक जाती है
झांक सकते हो सच में अक्स
वो गिरेबां नहीं सीते।
उन्हें कल से क्या ही वास्ता
उनकी तो बस आज से यारी
न बोल ऊंची इमारतों के
नहीं भाती उन्हें दुनियादारी।
होते हैं वो ऐसे मसीहा
कि उन्हें देखे तो
कफ़न में मौत भी रुक जाती।
