मन में विचार उठा
मन में विचार उठा
मैं प्रातः भ्रमण कर रही थी
मेरे देखते-देखते वृक्ष से
एक पत्ता नीचे गिरा
पत्ता पीला पड़ चुका था
मैंने उसे उठाया
प्यार से सहलाया
अभी भी उसमें चमक थी
प्रत्येक नस नाड़ी स्पष्ट थी
आकार भी एकदम पूरा था
केवल रंग हरे से पीला
हुआ था अपनी जन्म दात्री से
वह अलग हुआ था
गुरुत्वाकर्षण से नीचे
की ओर आ गया था।
एक-दो दिन में यह सूख कर
धरती में समा जाएगा
या फिर हवा के झोंके से उड़
न जाने कहां गायब हो जाएगा।
मन में विचार उठा
हर प्राणी भी एक दिन
इसी तरह अपने कुटुंब से
छिटक जाता है
और पता नहीं कहां चला जाता है
धरती में समा जाता है
या फिर एस्केप विलोसिटी से
अन्तरिक्ष में चला जाता है
कभी वापिस न आने के लिए।
