मन की चोट
मन की चोट
आज मन की चोट शरीर की चोट से गहरी थी,
शरीर पर लगी चोट, समय के साथ मिट जायेगी।
मन पर लगी चोट न तो कभी मिटेगी न हटेगी,
जिंदा हूँ जब तक यह चोट गहराती ही जायेगी।
रिश्ता निभाना क्या होता है यह तुमने ना जाना,
हम अंदर तक टूटते रहे यह हमारे दिल से पूछो।
कोशिश तो अब यह होगी हम तुम्हारे न रहेंगे,
न तुमको हम मिलेंगे, न हमको ये जख्म मिलेगा।
बनकर रहूंगी मैं अजनबी,तुम्हारे लिए दर्द न होगा,
जियूँगी मैं खुदके लिए,न तुम्हारी हमें जरूरत होगी
