मन की बात
मन की बात
ना थी पतवार और ना ही कश्ती
डूबतों को देखकर लगा कि जिंदगी है कितनी सस्ती
काश ना होता गमों का गुबार
ना होते दुखों के पहाड़
हमारे ख्वाबों सी होती एक हंसी बस्ती
झुकती थी जहां आसमां की भी हस्ती
वर्षा की बूंदों में झरते थे मोती
निशा की आगोश में शीतल चांदनी थी सोती
चंचल किरणें खिलखिलाती
नदियां थी अठखेलियां खाती
छल -छल करते झरने
पवन के चलते ही फूल लगते थे झड़ने
शबनम से सीचें
मखमली घासों के गलीचे
आकाश में उड़ते स्वच्छंद परिंदे
कलियों को चूमती तितलियां
फूलों पर मंडराते थे भंवरे
जानवर भी लगते थे सजे संवरे
मंदिरों से लगते थे मकान
हर चेहरे पर दिखते थे भगवान
प्यार प्रेम ना कोई घात- अघात
परेशानियों का ना था दूर तक साथ
स्नेहा प्रेम और ढेर सारा विश्वास
सभी को मिले खुशियों की सौगात
खत्म हो जाएंगे हजारों पन्ने
पर पूरी ना होगी
" मन की बात ।"
