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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

मन का सोर

मन का सोर

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मत कर रे मन यहां तू सोर है

हर शख्स ही यहां पर चोर है

फिर भी यूँ मरा नहीं जाता है

अपनी राह को यूँ ना तू मोड़ है

टूटी कश्ती है, टूटा किनारा है,

फिर भी श्रम कर तू जी तोड़ है

मत कर रे मन यहां तू सोर है

कभी न कभी मंज़िल मिलेगी,

लगाता रह बस तू कर्म दौड़ है 

कोई तुझे कितना भी सताये,

कोई तुझे कितना भी रुलाये,

तू मत घबराना, धैर्य रखना और,

चलता रहना लक्ष्य की ओर है

बहता है झरना साखी वहीं पर,

जिस औऱ होता पत्थरों का छोर है

मत कर रे मन यहां तू सोर है



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