मन का डर
मन का डर
डर मनुष्य का
सबसे बड़ा दुश्मन
कुछ हो या न हो
चैन उड़ा देता है।
सबसे अलग रहता
कुृछ घबराया सा
स्वयं को बचाता सा
रहता अनमना सा।
घुटता रहता अंदर ही
किसी से कह न पाता
सोच लोग क्या कहेंगें
बात मन में दबा जाता।
बात अन्दर खाती रहती
मन पर हावी हो जाती
कछ ऐसा लगने लगता
जैसे सच ऐसा ही होता।
दबाव जब बढ़ जाता
नींद में वह चिल्लाता
सच से कोसों दूर बस
दुनिया भी बदली पाता।
गर जीवन में आगे बढ़ना है
तो डर पर काबू पा जाओ
डर के आगे जीत है पक्की
पहले एक कदम तो बढ़ाओ।