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Nand Kumar

Abstract

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Nand Kumar

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मन अब रमता नही कहीं

मन अब रमता नही कहीं

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मन अब रमता नही कहीं, 

दिल बस्ती से घबराता है।

एक एकांत भाव हो शांत,

 सहज तेरा ही नाम सुहाता है।


आते है अवरोध बहुत मैं, 

तुम्हें भूल फिर जाता हूँ।

जब चहुदिशि दिखे नहीं कोई, 

तब पास आपको पाता हूँ।


क्या पाप हमारे है कुछ जो,

विचलित हमको कर जाते हो।

या तडपा तडपाकर हमको,

कंचन सा शुद्ध बनाते हो।


मुझमे इतनी सामर्थ्य नहीं, 

मैं तुम्हें दूर जो कर पाऊं।

तुम मुझे दूर ना कर देना,

जैसा हूं तेरा कहलाऊं।


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