मकान
मकान
हर किसी के दिल का होता है यही अरमान,
छोटा सा ही सही पर अपना हो एक मकान,
मकान बनाने की खातिर जीवन भर दौड़ता इंसान,
मारता है ख्वाहिशों को तब जाकर बनता है मकान,
मकान सिर्फ ईंट पत्थर से बनी चारदीवारी नहीं,
यह भाव और एहसासों की होती है एक कहानी,
जिसकी प्रत्येक दीवार से अरमान जुड़े होते हैं,
जिसकी एक एक ईंट में कितने सपने सजे होते हैं,
खुशियों की चादर ओढ़े जब मकान तब एक घर बनता है,
सपने सजते हैं जहां प्यार से जिसे सजाया संवारा जाता है,
परिवार के हर सदस्य के लिए घर पूरा जहान होता है,
मिलता अपनों का साथ जहां हर सुख-दुख बांटा जाता है,
बड़ों का आशीर्वाद छोटो का प्यार जहां खिलखिलाता है,
वही मकान तब घर बनकर हमारी पहचान बन जाता है,
पर जिस घर में प्यार नहीं एहसास नहीं अपनापन नहीं,
वो महज़ ईंट पत्थर से बना मकान बन कर रह जाता है,
जिसकी हर दीवार रंगीन होते हुए भी बेरंग सी लगती है,
जिसका हर सदस्य उस मकान का किराएदार लगता है।