मजदूरों की पीड़ा
मजदूरों की पीड़ा
हालात नहीं अनुकूल मेरे,
इसलिए गांव की ओर चले।
वापिस आऊंगा मै फिर से,
जब ये बलाएँ दूर टले।।
आया था अपने गांव से,
करने को यहां मै मजदूरी।
खाली हाथों निकले हैं हम,
जाने कैसी है ये मजबूरी।।
इन शहरों में जब आया तो,
अपनाया हमें गले लगाकर।
संकट जब आया माथे पर तो
छोड़ गए अजनबी बनकर।।
खून से लथपथ इन सड़कों पर,
कितने पीड़ा छोड़ चले।
"color: rgb(0, 0, 0);">बाधाओं की हर एक फाटक,
इन्ही पैरो से तोड़ चले।।
कहता हूं मै उन लोगों से,
जो देते नहीं हम सबको मान।
खोया है सपने हम सब ने,
पर खोया नहीं अपना सम्मान।।
वापिस आऊं जब भी घर से ,
तो लेना तुम हमको पहचान।
कर के मजदूरी इन शहरों में,
फिर लाऊंगा इनका मुस्कान।।
पत्थर हो या हो अन्य सामान,
इन सबका भार उठा लूंगा।
फिर से सपनों की नगरी में,
तुम सबका मान बढ़ा दूंगा।।