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Abhay Nath Thakur

Abstract

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Abhay Nath Thakur

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जागते सपने

जागते सपने

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जाता हूं जब भी सोने को,

स्वप्न नया पा लेता हूं ।

आंखे खोली जब भी मै तो,

सौगंध नया खा लेता हूं ।।


होंगे सफल या हार मिलेंगी,

सोचता है केवल यह मन।

लेकर प्रण मन ही मन में,

रख दिया आगे पहला कदम।।


जब भी लगा जरूरतें हैं,

मुझको किसी सहारों की।

तभी किया चिन्तन मैंने ,

देखा जो स्वप्न बहारों की ।।


अथक प्रयास करने पर भी ,

सूरज की किरणें दिखा नहीं ।

मंजिल को जो पहुंचा दे ,

वो रास्ते अभी मिला नहीं।।


कड़ी धूप हो या हो बारिश,

कदम नहीं ये रुकता है।

पांव में छाले पड़ने पर भी,

संकल्प नहीं ये टूटा है।।


राहों में काटों का मिश्रण ,

देख ये मन घबराता है ।

देख अपनी पदचिन्हों को ,

मन ही मन को समझाता है ।।


स्वप्न जो देखा था मैंने,

पूर्ण होने को है  आई।

साथ अपने देख कितने,

अनुभवों  को है लाई ।।



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