मंजिल की तलाश
मंजिल की तलाश
निकल पड़ा हूं सुनसान सड़कों पर ,
डर है कहीं खो ना जाऊं।
जागती आंखो ने कुछ सपने देखे हैं
डर है कहीं सो ना जाऊं।।
इन सपनों को लिए निकल पड़ा हूं,
अकेले ही इस राह पर।
मिले जो कोई तो पुछु उनसे,
क्यों गर्व है अपनी चाह पर।।
इस जिंदगी की राह पर ,
बहुत से पड़े हैं पत्थर।
पता नहीं मंजिल मिलेगी ,
या मिलेगी केवल ठोकरें।।
कर्म तो बहुत कर लिया,
अब नसीब का सहारा है।
नसीब मेरा खराब नहीं,
ये वक़्त का मारा है।।
चहुं दिशा में इस जिंदगी की,
हर तरफ एक मोड़ है।
हर घड़ी हर किसी को,
बस जीतने की होड़ है।।
माना कि थोड़ा थका हूं मैं,
लेकिन अभी झुका नहीं।
मत समझ की हार गया,
अभी तो मैं रुका नहीं।।
