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Prashant Beybaar

Abstract Others

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Prashant Beybaar

Abstract Others

मजबूरी

मजबूरी

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अपनी ये मजबूरी मैं तुम्हें बताऊँ कैसे

फ़िज़ा में ज़ख़्म-ए-दिल दिखाऊँ कैसे


घड़ी घड़ी सिसकियाँ, आह ! बेहिसाब

और अपना हाल-ए-दिल सुनाऊँ कैसे


इस बेबसी में जीना मुमकिन नहीं मगर

पूरा घर है इन कंधों पे, मर जाऊँ कैसे


पैदल भी चला तो शायद मौत को हरा दूँ

मैं सफ़र-ए-ज़िन्दगी में, ठहर जाऊँ कैसे


ईंट पत्थर से मकां हमने बनाया उम्रभर

फ़क़त बातों से ये अम्बर, सजाऊँ कैसे


अभी तो क़यामत का आग़ाज़ है ये क़ैद

दिल को अंजाम का यकीं दिलाऊँ कैसे


रोज़ के निवाले किस बला ने छीन लिए

हाय ! बच्चों को भूखे पेट सुलाऊँ कैसे


सब सो गए 'बेबार', चलो अब रोया जाए 

बेटी का हीरो हूँ, लाचार नज़र आऊँ कैसे 



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