क्यों ऐसे दिन हैं उजड़े से , क्यों रूठी रात है आखिर! क्यों ऐसे दिन हैं उजड़े से , क्यों रूठी रात है आखिर!
पैदल भी चला तो शायद मौत को हरा दूँ मैं सफ़र-ए-ज़िन्दगी में, ठहर जाऊँ कैसे पैदल भी चला तो शायद मौत को हरा दूँ मैं सफ़र-ए-ज़िन्दगी में, ठहर जाऊँ कैसे