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Vikram Kumar

Others

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Vikram Kumar

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क्या बात है आखिर

क्या बात है आखिर

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क्यों ऐसे दिन हैं उजड़े से , क्यों रूठी रात है आखिर

है खोया मन ये क्यों मेरा , कहो क्या बात है आखिर!


क्यों ये बहारें भी नजर को रास न आएं

क्यों सूकूं के पल दिल के पास न आएं

क्यों बुझा सा दिल ये मेरा आज है जाने

ये ही है मेरा अंजाम या आगाज है जाने


समझ में आए न कुछ भी , ये क्या हालात है आखिर

है खोया मन ये क्यों मेरा , कहो क्या बात है आखिर!


अंतर्मन न जाने क्यों हुआ ये मौन है मेरा

अगर तुमसे न पूछूं तो कहो कि कौन है मेरा

मेरे अपनों में कोई अब तलक न ऊंचा है तुमसे

यही बस सोचकर ये बात मैंने पूछा है तुमसे


हुई दिल की जमीं पर गम की क्यों बरसात है आखिर

है खोया मन ये क्यों मेरा , कहो क्या बात है आखिर!


कभी भी अपने इस दिल की हिफाजत की नहीं मैंने

हुए हालात जो कुछ भी, शिकायत की नहीं मैंने

कभी भी भाव धीरज का , किया ना दूर था मैंने

हंसके खुशियों और गम को किया मंजूर था मैंने


मगर इस बार जाने खा गया क्यों मात है आखिर

है खोया मन ये क्यों मेरा , कहो क्या बात है आखिर!


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