मजबूर
मजबूर
बड़ा ही मजबूर हूँ तेरी इस बनायी निराली कायनात पर।
कोई चलता सीना ताने, कोई मजबूर है अपने हालातों पर।।
समझ ही नहीं पाता, कौन अपना है कौन पराया।
जिस पर भी उम्मीद थी अपनी, मुश्किल कर दिया चलना राहों पर।।
परिवार में ही ऐसा उलझा, गुजर गया आधा यह जीवन।
मकसद जीवन का भूल गया मैं, धिक्कार है ऐसे जीवन पर।।
मान बढ़ाई के चक्कर में पड़कर, हो ना सकी इबादत तेरी।
कठपुतली बन नाच रहा था, अहंकार था अपने ही बल पर।।
लीला तेरी अब तलक समझ ना पाया, क्यों भेजा तुमने इस दुनिया में।
चाह कर भी तुम तक पहुँच ना सकता, शर्मसार हूँ अपने ही जीवन पर।।
संघर्ष करना मानव जीवन की, जीवन पर्यन्त प्रवृत्ति बन बैठी।
शांति और खुशी की तलाश में नीरज, पूर्ण होगा तुमको पाने पर।।