मिले सदा
मिले सदा
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मिले सदा ज्ञान-गुण के मोती,
कर्म मुक्ति नहीं चाहिए,
करुँ भोग में योग सिद्ध,
संसार मुक्ति नहीं चाहिए।
मिले सदा ज्ञान-गुण के मोती,
जात-पात के बंधन तोड़ दूँ,
भेदभाव की श्रुंखलाएँ,
निश-दिन मैं खिलता ही रहूँ,
जैसे फूलों की कलाएँ।
मिले सदा ज्ञान-गुण के मोती,
भवसागर में डूबती नैय्यों का,
मैं बन जाऊ खिवैया,
दीन-दुखियों के जीवन का,
मैं बन जाऊँ सिपैया।
मिले सदा ज्ञान-गुण के मोती...