माँ
माँ
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अवधूत के ह्रदय में,
नित गूँजती गुँजन है माँ,
अलख सृष्टि के आशाओं की,
नित्य निरंजन है माँ !
फूलों के अतरंग में,
फुहारती मधु गंगा है माँ,
सुगंध से निखरती,
सुगंध की सुंदरता है माँ !
सूर्यमा की किरणों से,
खिलता शुद्ध आनंद है माँ,
श्वेत हिमनगों से मुस्कुराता,
दिव्य आलोक है माँ !
शशी से उमड़ता जीवन का,
अमृतरस है माँ,
पत्तों के तन पे सजती,
रोशनी की कविता है माँ !
मिट्टी के आँखों में पनपता,
बीज़ का सपना है माँ,
रात के गर्भ में सोया,
उषा का नया सवेरा है माँ !
विराट विश्व के गतिशीलता की,
परिभाषा है माँ,
सृष्टि के संगीत की,
तू सगुणसंगीतकार है माँ !
छोटे-से मन से कैसे,
तेरे अनंत गुण गाऊँ माँ,
अच्छा यही है कि औरों की,
सुनता मैं मौन रहूँ माँ !