महंगाई
महंगाई
सुरसा मुख सी बढ़ रही महंगाई।
दिन प्रतिदिन कम हो रही कमाई।।
सजे कैसे अब थाली भोजन की।
पूरी हो अधूरी शिक्षा बच्चों की।।
दिन-रात बस रहती यही कवायत है।
हाँ वक्त से अब यही शिकायत है।।
किंतु कभी क्या सोचा है हमने ।
कोशिश वजह जानने की किसीने।।
कि निजी स्वार्थ से ऊपर देश हित है।
है अस्तित्व तभी जब वो सुरक्षित है।।
घात लगाए बैठे हैं दुश्मन चारों ओर।
चुके जरा भी नहीं छोड़ेंगे आदमखोर।।
भारत की सुरक्षा पर खर्च जरूर
ी है।
हो गरीब की रोटी पूरी जो अधूरी है।।
आतंकवाद से बचना तो मजबूरी है।
दूसरों से कदमताल मिलाना जरूरी है।।
हो सर्वांगीण विकास अपने देश का।
तभी जीतेगें हम विश्वास सभी का।।
इन सब के लिए तो अर्थ जरूरी होगा।
फिर पेट्रोल बढे़ जीएसटी देना होगा।।
यदि चाहते हैं हम भी लंका की फतह
तो समझना होगा जीवन की सतह।।
हनुमत को सूक्ष्म रूप धरना ही होगा।
सुरसा मुख से अब निकलना होगा।।
उदित होगा तब विकास का नवप्रभात।
भरेगा जीवन में जो प्रकाश की सौगात।।