महज एक मुस्कान
महज एक मुस्कान
मैंने देखा एक चेहरा मुस्कुराता हुआ,
वो महज एक मुस्कान ही ना थी।
ना जाने क्यूं आंखों में नमी थी
अधरों पर अल्फाज़ों की कमी थी
मुख पर शांत भाव थे
जैसे मन में कई घाव थे
रिस रहा रक्त बरसों उन घावों से
है बेड़ियां जो निकलती नहीं पावों से
मैंने देखा एक चेहरा मुस्कुराता हुआ,
वो महज एक मुस्कान ही ना थी।