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Karishma Gupta

Others

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Karishma Gupta

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खामोशियां

खामोशियां

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खामोशियां, ये हलचल पैदा करती है 

शांत सागर में धीमी लहरों के जैसे

धीरे–धीरे लाती है कितने प्रश्न 

लौट जाती है उत्तर दिए बिना 

उन्हीं सवालों के साथ 

फिर छोड़ जाती हैं रेत पर सिर्फ खामोशियां।

जो बिखरी पड़ी रहती हैं यहां वहां

समेत भी लूं मुठ्ठी में फिसल जाती हैं

रेत की प्रवृत्ति सी चाहती है केवल बिखराव

समेटने को भी नहीं रहता बाकी कुछ

रहती है चारों और सिर्फ खामोशियां।



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