महामारी
महामारी
हाय! कैसी महामारी ये आ गई,
फिर से गरीबों को रूला गई,
लोग नयी नयी रेसेपी बना रहे हैं,
और वो गरीब एक रोटी के लिए तरस रहे हैं।
कुछ लोग नयी कला सीख रहे हैं,
और वो गरीब बस अपनी
जिंदगी की दुआ मांग रहे हैं।
जिंदगी जीने का हक तो खुदा
ने सबको बराबर दिया,
मगर किसी को आलिशान महल,
तो किसी को फुटपाथ पर कैसे छोड़ दिया।
कहते हैं मनुष्य को उसके
कर्मों का ही फल मिलता है ,
तो क्या जितने भी पीङित है,
उन्होंने कभी अच्छे कर्म न किये,
या उनको अच्छे कर्मो का भी
सिर्फ दण्ड ही मिलता है।
कब उसको दो वक्त के
खाने का मौहताज न होना होगा,
कब उसको भी नयी कला
सीखने का समय है मिलेगा,
कब उसको भी
अच्छे कर्मो का फल मिलेगा ,
कब उसको फुटपाथ
को छोड़ कर, अपना घर मिलेगा।
आखिर कब ये महामारी जाएगी
और कब वो गरीब फिर से मुस्कुराएगा।
