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महाज़ ए दुनिया

महाज़ ए दुनिया

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कुछ यादें जो अब ख़्वाब हैं

कुछ ख़्वाब जो अब भी याद हैं

आज फिर रात अँधेरे में गुज़रेगी

कहने को रोशन रात है

जितने दोस्त थे सब दूर हैं

दुश्मन भी कहाँ कोई साथ है

मैं हार गया सबके ज़र्फ़ देख कर

सबको लगा ये मेरी मात है

मैं टूटा-टूटा सा रहता हूँ

मेरे ग़मों में कुछ तो बात है

मैं जिनको महसूस करता रहा हूँ तसलसुल

ये मेरे हैं या फिर मुन्तज़िर तुम्हारे एहसासात हैं?


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