मेरी तुम
मेरी तुम
तुम्हारे बिना शाम की चाय,
पी तो लेता हूं, पर,
जी नहीं पाता,
वो पल,
जो तुम्हारे होने से,
जिन्दगी का इक हसीन लम्हा बन जाता है।
थाम लेता है वक्त, कदम अपने,
जब देखती हो तुम, मेरी आंखो में,
अपना ही एक हिस्सा।
शाम, खामोशी का आसमाँ ओढ़ लेती है,
जब बोलते हैं तुम्हारे लफ्ज,
भीतर छिपे कुछ गहरे अल्फाज।
मैं सोचता हूं, अकेले,
इन चाय की फीकी चुस्कियों के दरमियाँ,
कि तुम कितनी जरूरी बन गयी हो,
मेरी जिन्दगी के सूखे शजर पे,
खिल आयी कोंपल की तरह...
तुम्हारा होना,
मुझे हमेशा मेरे होने का एहसास कराता है।

