मेरी संस्कृति
मेरी संस्कृति
सबसे उज्जवल इसकी कृति,
भारत मेरा सर्वणीम पाखी।
भेदभाव की जाने ना बोली,
भूले - भटके को राह दिखाती।
वीनित, आदर्श है मेरी संस्कृति,
क्षमाशील है इसकी वाणी।
लौटाए न अतृप्त किसी को ये धरती,
अपनी थाली से गरौं की भूख मिटाती।
दामन में भर दे अनंत खुशहाली,
सबसे निराले हैं हम हिंदुस्तानी ।
सदभावना, एकता और शांति के गीत गाती,
वसुधैव कुटुंबक का रीत आज भी निभाती।
इतनी पावन है मेरी माटी,
इसीलिए रोज नया इतिहास बनाती।
