मेरी सखी
मेरी सखी
पल दो पल जो सोचा तुमको,
दुनिया सारी भूल गए।
ज्यों ही, पलकों को बंद किया
यादों में तेरी झूल गए।
वो भी क्या दिन थे मेरी सखी,
पहरों हम बातें करते थे।
कभी अलग ना होंगे हम -तुम
कितने वादे करते थे।
फिर वो दिन आया विदा हुए हम,
अपनी-अपनी मंज़िल को।
अब तो यादें बाकी दिल में जाने
कब, मिलना मुमकिन हो।