मेरी शख्सियत
मेरी शख्सियत
अजीब सी है मेरी शख्सियत,
जो लिखूँ तो लोग पढ़ते हैं,
पर समझ नहीं पाते मेरी भावनाओं को,
जो मैं शब्दों में छुपाता हूँ बेहद धीरे से।
मेरी अंदर की आग को,
कोई सुलगता हुआ ज्वालामुखी समझता है,
पर वो नहीं जानता कि वो तो मेरी कलम है,
जिसमें मैं अपनी जिंदगी को लिखता हूँ चुपचाप।
शायद मेरी शख्सियत है थोड़ी अलग,
लोग मुझको कुछ अलग समझते हैं,
पर जब मैं शब्दों की दुनिया में खो जाता हूँ,
तब सब कुछ अपना लगता है,
जैसे मैं अपने आप से मिल रहा हूँ।