मेरी मंज़िल
मेरी मंज़िल
मंज़िल पर चलते चले जाना है
पथरीली राहों पर फूल उगाते जाना है।
बहुत सोया है,बहुत खोया है
अब तो जागते ही जाना है।
कर्म तरंगें उठ रही है मन की,
तरंगों को सुनामी बनाते जाना है।
बहुत देख लिए है सपने,अब ख्वाबों से निकल,
हक़ीक़त का कोहीनूर बनते जाना है।
इतिहास बनाता है वही,अविराम चलता है
तुझे अविराम चलकर इतिहास बनाते जाना है।
कमजोर तू नहीं तेरा वक्त है,
वक्त पर तुझे आईने बनते जाना है।