मेरी माँ
मेरी माँ
माँ तुम्हें सोचकर लगता है,
मैंने क्या-क्या नही पाया,
जन्म लेने के लिए मिला,
तुम्हारी कोख़ का साया।
जन्म मैंने लिया मगर,
पीड़ा तुमने थी सही,
यह सब सोचकर अब,
दूर नहीं रहा जाता मुझसे कहीं।
मुझे आज भी याद है,
तुम्हारी गोद में बिताये वो पल,
न जाने क्यों इतनी,
जल्दी बीत गये वह कल।
तुम्हारा उँगली पकड़कर चलाना,
खिलाना और नहलाना,
मेरा रात रात भर रोना,
तुम्हारा प्यार से सहलाना।
चलते चलते ही तो,
सीखा हूँ सबकुछ तुम्हारे साथ,
दुनिया दिखाई है तुमने,
पकड़कर मेरा हाथ।
अब तक भी माँ,
मैं नहीं पाया संभल,
अब हट जो गया हैं,
आपका आँचल।
बेशक आज मैं अपनी,
परेशानियों से मजबूर हूँ,
घर परिवार से काफी दूर हूँ,
मगर आपका साया मुझसे दूर नहीं।
मुझे आज भी,
याद हैं वह सब बात,
जो आपने मेरे,
हित में थी कही।
