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Sangeeta Chaudhary

Drama Tragedy

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Sangeeta Chaudhary

Drama Tragedy

मेरी माफ़ी ही तुम्हारी सज़ा

मेरी माफ़ी ही तुम्हारी सज़ा

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जवाब तो दे दूँ, तुम्हारी हर बात का,

पर आजकल मन ही नहीं होता तुमसे मुलाक़ात का।


फ़िर भी,

सोचूँगी क़भी तुमसे रूबरू होने का एक दिन ज़रूर,

बस ख़ाक होने दो मन के सब अरमानों को जो तुमसे ताल्लुक रखते हैं।


याद ज़रूर रखती हूँ तुम्हारे किए हर ज़ुल्म की दास्ताँ,

ये धीमा धीमा ज़हर अब भी हर रोज़ पीती हूँ।

होने दी हद की इंतहा एक बार,

उगलूँगी ज़रूर, रोज़ उस इन्तेक़ाम के इंतेज़ार में जीती हूँ।


जलोगे तुम जिस दिन पछतावे की ज्वालामुखी में,

उस रोज़ आऊँगी और देखूँगी तुम्हारा गुमान तुम्हारे किस काम आया,

फ़िर उस दिन एक सवाल तुम्हें दे जाऊँगी,

सवाल ऐसा जिसके जवाब में तुम ख़ुद को कुरेदोगे, फ़िर भी बिन ज़वाब रहोगे,

पूछुंगी उस रोज तुमसे हर वो बात,

जिसका जवाब वाक़ई में तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा।


तुम भटकोगे दर-बदर,

रोओगे छुप-छुप कर,

याद रखना उस वक़्त तुम्हारे आसपास कोई नहीं होगा,

तब तुम ढूँढोगे मुझे, तुम्हारे पास होकर भी तुम्हारे साथ नहीं होऊँगी।


तुम्हें तड़पते देखकर, भटकते-टूटते देखकर,

तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ जाऊँगी,

एक वादा ज़रूर है तुमसे, तुम्हें सज़ा देने के लिए,

तुम्हें उस रोज़ माफ़ कर जाऊँगी!


तुम्हें सज़ा देने के लिए,

तुम्हें उस रोज़ माफ़ कर जाऊँगी!


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