मेरी कविता
मेरी कविता
अक्सर मुझसे सवाल करती है मेरी कविता।
जाने क्या कहना चाहती है?
और जाने क्या क्या कह जाती है ?
खुद से ही मुझको बेगाना बना देती है मेरी कविता।
मुझसे ही बातें करती हैं,
तो कभी खामोश हो मुझसे ही रूठ जाती है मेरी कविता।
पलभर में सारे जहाँ की खुशियाँ लुटाती।
अक्सर धूप छाँव का खेल खेलती,
नजर आती है मेरी कविता।
मेरी तन्हाई को दूर करती,
कभी मेरी सच्ची दोस्त सी बन जाती।
जानें कौन सा जुनुन ढूढ़ँती ?
सारे जहाँ में भटकती,
आत्मा के तार पर शब्द तराशती।
हर जज्बे को झकझौरना चाहती
कभी सच्ची हमदम बनती,
खुद में ही मुझे ढूढँती,
मेरे सपनों के तार पे थिरकती।
कभी रंगों के जहाँ में रंगीन बन जाती।
मायूसी में भी नई उत्साह जगा जाती।
कदम से कदम मिलाए चलती,
नए नए शब्दों संग नया स्वरूप,
अब भी उभरती है "मेरी कविता "।
अब भी उभरती है " मेरी कविता"।
