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Nivedita Sinha

Inspirational

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Nivedita Sinha

Inspirational

मैं धरा की मिट्टी

मैं धरा की मिट्टी

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मैं धरा की ठोस वजूद,

मैं धरा की पावन मिट्टी।

सबकुछ को खुद में ,

समाने की मुझ में शक्तिI

मैं ही देती सभी को पनाह ।

मानव, पशु पक्षी संग ,

सभी पेड़ पौधे के लिए,

हमेशा खुली मेरी बाँह।

मेरा श्रृंगार है इनके संग,

ये सभी मेरे विभिन्न अंग ।

किसी के भी बिछड़ने पर,

होती मुझे पीड़ा ओर गम ।

मेरे ही आँचल में खेले,

मेरे कई अनमोल लाल ।

कई ने मेरी रक्षा हेतु किया निछावर प्राण अपने ।

मेरे लिए ही सजायें सारे सपने अपने,

धन्य हुई मैं धरा की मिट्टी ,

ऐसे अनमोल लाल पाकर ।

पर कुछ मेरे ही लाल,

काट रहे वन, सूना कर रहे मेरा आंगन,

अपने स्वार्थ हेतु छिन रहें मेरी हरियाली ।

वातावरण और नदियों में भी फैला रहें प्रदूषण,

मैं धरा की मिट्टी गर्मी का ताप ,वर्षा की बाढ़

जाड़े के शीत का कहर सब कुछ चुपचाप झेलती ,

क्योंकि मैं ही जननी मिट्टी सबकुछ खुद में समेटती

सबकुछ मुझ से ही बन फिर मुझ में ही होता समर्पित 

यही है मेरी प्रकृति, मैं मिट्टी मैं मिट्टी ॥



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