गुलाब और काँटे
गुलाब और काँटे
काँटों के बीच पला मैं,
काँटों के बीच खिला मैं,
फिर भी मुस्कुरा रहा मैं,
और ख़ुशी फैला रहा मैं ।
जब जग में आए हो,
कुछ काम कर चलो,
सब ओर उजाला कर दो,
अपनी ख़ुशबू फैला दो।
क्यों दुखों से गमगीन रहो,
सुख दुख तो आना जाना है,
क्यों इनको लेकर परेशान रहो,
यह तो जीवन का तानाबाना है।
जहाँ कॉंटे हैं वहॉं फूल भी हैं,
कॉंटे ही तो रक्षक हैं,
काँटों का ही पहरा है,
सुकुमारता संग कठोरता है।
काँटों को तो सहना होगा,
प्रतिकूलताओं पर पलना होगा।
साहस संकल्प तो करना होगा,
जीवन सार्थक करना होगा।
घेरे रहे न मेरे जीवन को,
मेरे मानस का संताप,
गूंजता रहे मेरे जीवन में,
दिव्य भावों का आलाप।