धरा... राम शरण सेठ सेठ
धरा... राम शरण सेठ सेठ
धरा आज पुकार रही।
तू करता रहा मेरा दुरुपयोग।।
आज उसी का परिणाम तू।
भुगत रहा।।
सुधर गए तो तेरा भविष्य।
उज्जवल होगा।।
ना सुधरा तो तेरा भविष्य।
अंधकार होगा ।।
धरती यही पुकार रही ।
आ जाओ मेरे साथ सभी।।
तभी जाकर हम और।
तुम इस संसार को आगे ले पाएंगे।।
और आने वाली पीढ़ी को।
कुछ नया दे पाएंगे ।।
नया दे पाएंगे उन्हें ।
कुछ बता पाएंगे ।।
भविष्य के लिए एक।
सुंदर संसार छोड़ जाएंगे।।
धरा आज पुकार रही।
तू करता रहा मेरा दुरुपयोग।।
