भाषा: अद्यतन
भाषा: अद्यतन
1 min
385
भाषा निरंतर चल रही है।
हम सभी से कह रही हैं।।
रास्ते में दूरी बहुत तय कर चुकी है।
हर किसी को अपने साथ ले चुकी है।।
कभी उत्तर तो कभी दक्षिण।
कभी पश्चिम तो कभी पूरब को ले चुकी है।।
चलने का यह सिलसिला।
निरंतर चलता जा रहा है।।
जो मिल रहा है उसको भी।
साथ लेता चला जा रहा है।।
वैदिक लौकिक से आगे बढ़ते हुए।
अपभ्रंश तक पहुंच चुकी है।।
अपभ्रंश से आगे होते हुए।
आधुनिक स्वरूप को पा रही है।।
शुरुआत से ही समावेशी बन रही है।
हर बोली को अपने में समाविष्ट कर रही है।।
आज स्वरूप इसका जो बन रहा है ।
हम सभी के लिए यह गर्व की बात हो रही है।।