मेरी कलम
मेरी कलम
कलम जब चलती है भूल जाता हूँ लिखते लिखते ,
कोरा कागज़ कब भर जाता भाव लिखते लिखते ,
अपनी कलम से सभी विचारों को मैंने पिरो दिया ,
शब्दों से उन छंदों को बनाकर काव्य सँजो दिया ,
हर रोज दिल से पढ़ता रहता उन सभी अल्फ़ाजों को ,
कह देती मेरी कलम मेरे अनकहे सभी जज़्बातों को I