ग़ज़ल - तू ही इस पार है भगवन तू ही उस पार रहा...
ग़ज़ल - तू ही इस पार है भगवन तू ही उस पार रहा...
तू ही इस पार है भगवन तू ही उस पार रहा।
तू ही कश्ती, तू ही साहिल, तू ही मझधार रहा।
जैसे हो दूध में मक्खन या हो फूलों में इत्र,
वैसे साकार हो के भी तू निराकार रहा।
सब पे इक सा ही रहा साया तेरी रहमत का,
जिस ने माँगा नहीं वो भी तेरा हक़दार रहा।
ढूँढते रह गए बंदे तेरे तुझ को बाहर,
और तू उन के दिलों में ही गिरफ़्तार रहा।
तू ही क़ुरआन में है और है गीता में भी तू,
तू अलिफ़ भी रहा है और तू ही ओंकार रहा।
ज्ञान का स्रोत भी तू और तू ही सार भी है,
सारे वेदों का पुराणों का तू आधार रहा।
मेरी आवाज़ भी दम से तेरे ही है मालिक,
इस 'नवा' की भी नवा में तू ही हर बार रहा।
