बात निकली तो मेरी ज़ात पर आकर ठहरी...
बात निकली तो मेरी ज़ात पर आकर ठहरी...
बात निकली तो मेरी ज़ात पर आ कर ठहरी,
ज़ात से निकली तो औक़ात पर आ कर ठहरी।
ज़ात : स्वभाव
औक़ात : हैसियत
अपने हक़ में कभी इस्बात नहीं दे पाया,
बे-गुनाही मेरी इस बात पर आ कर ठहरी।
इस्बात : सबूत का बहुवचन
जब भी उठ्ठी कभी चेहरों के लिए मेरी नज़र,
हर दफ़ा सिर्फ़ हिजाबात पर आ कर ठहरी।
हिजाबात : हिजाब का बहुवचन
वो जो इक बात कि जिस पर न कभी मैं ठहरा,
सब की हर बात उसी बात पर आ कर ठहरी।
मुख़्तसर ही रही चाहत की बग़ावत मुझ में,
जब भी सरकश हुई हालात पर आ कर ठहरी।
सरकश : विद्रोही, हठी, ज़िद्दी
इस शनासाई को कैसे मैं शनासाई कहूँ,
हर मुलाक़ात मुलाक़ात पर आ कर ठहरी।
शनासाई : जान-पहचान, परिचय
कुछ अधूरे से जवाबात की नादानी से,
मेरी हस्ती ही सवालात पर आ कर ठहरी।
सारी दुनिया में उजालों की मुनादी कर के,
आज फिर एक सहर रात पर आ कर ठहरी।
मुनादी : घोषणा, ढिंढोरा