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NAVIN JOSHI

Others

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NAVIN JOSHI

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ज़ात का मेरी जो चेहरा होता ...

ज़ात का मेरी जो चेहरा होता ...

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ज़ात का मेरी जो चेहरा होता

मेरे घर में नहीं शीशा होता।


ये कुआँ इतना न गहरा होता, 

जो किसी ने कभी झाँका होता। 


तुम ने पौधे को रखा साए में,

धूप में रखते तो ज़िंदा होता। 


जो अँधेरों में उजाले पलते, 

तो उजालों से अँधेरा होता।


तू हक़ीक़त था नज़र आया नहीं, 

ख़्वाब बन जाता तो देखा होता।


तू जो आँसू न बना होता अगर, 

आँख से मेरी न टपका होता। 


उस के माँ बाप नहीं है शायद, 

वर्ना उस में कहीं बच्चा होता।



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