मेरी किताबें मेरी दोस्त
मेरी किताबें मेरी दोस्त
कितनें ही दिन गुजर गए
महीनें भी बदल गए
मेरी तुमसें कोई
मुलाकात नहीं हुई
बड़ी हसरतों से वो
देख रही है मुझे
उससें बात जो नहीं की
मैंने तो सहेज रखा है उसे
अलमारी में करीने से
पर सकुची सिमटी पड़ी है
शायद अकेली सी खड़ी है
जो मेरे संग इठलाती थी
वो बेजान सी पड़ी है
तुम तो मेरा एक
खूबसूरत सा ख्वाब हो
तुम ही सवाल
और तुम ही जवाब हो
तेरे अंदर तो भरा पड़ा है
ज्ञान का अथाह समंदर
जो तुझसे ना मिला हो
रह जाएगा तड़पता
अंदर ही अंदर
तू तो ज्ञान की ज्योति
भर देती जीवन में मोती
भेद भाव तुम ना किसी से करती
सबको ज्ञान से भरती
तुम तो अकेलेपन की साथी
जैसे दीप संग हो बाती
तुझसे बात करकें
पाती हूं सुखद परिणाम
बहुत कुछ सीख कर
पाती हूं नया इनाम
तुझमें सजें एक -एक अक्षर
अद्भुत अनमोल खजाना है
पढ़ने वालों ने ही
तेरी शक्ति को पहचाना है
तेरी संगत में रहकर
जीवन मूल्यवान बनाना है
तुमसे बिछड़ कर यूं लगता है
जैसे सांसें बंद हो जाती है
दूर रहने पर भी मन
अमरबेल सी तुझसे लिपट जाती है
तुझमें ही सिमटा हुआ
कई चीजों का राज
तुम ही मनुष्य के
जीवन का चरम आवाज
तुम ही तो सफलता का मार्ग
ले जाती खुशियों के द्वार
तुझको पढ़कर हो जाता
मानव जीवन का उद्धार
खामोश रहकर भी तुम
बहुत कुछ सिखाती हो
सब के अंधेरों को
रोशन तुम कर जाती हो