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Anju Singh

Abstract Inspirational

4.0  

Anju Singh

Abstract Inspirational

मेरी किताबें मेरी दोस्त

मेरी किताबें मेरी दोस्त

1 min
489


कितनें ही दिन गुजर गए

महीनें भी बदल गए

मेरी तुमसें कोई

मुलाकात नहीं हुई


बड़ी हसरतों से वो

देख रही है मुझे

उससें बात जो नहीं की

मैंने तो सहेज रखा है उसे

अलमारी में करीने से

पर सकुची सिमटी पड़ी है

शायद अकेली सी खड़ी है

जो मेरे संग इठलाती थी

वो बेजान सी पड़ी है


तुम तो मेरा एक

खूबसूरत सा ख्वाब हो

तुम ही सवाल 

और तुम ही जवाब हो


तेरे अंदर तो भरा पड़ा है 

ज्ञान का अथाह समंदर

जो तुझसे ना मिला हो

रह जाएगा तड़पता 

अंदर ही अंदर


तू तो ज्ञान की ज्योति

भर देती जीवन में मोती

भेद भाव तुम ना किसी से करती 

सबको ज्ञान से भरती

तुम तो अकेलेपन की साथी

जैसे दीप संग हो बाती


तुझसे बात करकें

पाती हूं सुखद परिणाम

बहुत कुछ सीख कर 

पाती हूं नया इनाम


तुझमें सजें एक -एक अक्षर

अद्भुत अनमोल खजाना है

पढ़ने वालों ने ही

तेरी शक्ति को पहचाना है

तेरी संगत में रहकर 

जीवन मूल्यवान बनाना है


तुमसे बिछड़ कर यूं लगता है

जैसे सांसें बंद हो जाती है

दूर रहने पर भी मन 

अमरबेल सी तुझसे लिपट जाती है


तुझमें ही सिमटा हुआ

कई चीजों का राज 

तुम ही मनुष्य के 

जीवन का चरम आवाज


तुम ही तो सफलता का मार्ग

ले जाती खुशियों के द्वार

तुझको पढ़कर हो जाता

मानव जीवन का उद्धार


खामोश रहकर भी तुम

बहुत कुछ सिखाती हो

सब के अंधेरों को 

रोशन तुम कर जाती हो



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