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Bhavna Thaker

Romance

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Bhavna Thaker

Romance

मेरी जिह्वा

मेरी जिह्वा

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मेरी चाहत की मुखर जिह्वा तुम्हारे सम्मुख आते ही गूंगी हो जाती है।

यूँ तो कितनी बड़बड़ाती है

मेरी आँखों की शोख़ी में हया की हिचकी ठहर जाती है इज़हार ए इश्क में क्यूँ शब्द बौने बन जाते है।

ये कैसी विडम्बना है महज़ चार शब्दों की रेखा खिंचने में दिमाग की मति मारी जाती है। 

उर की गति धड़धड़ाती है तुमसे नज़रें मिलते ही ख़्वाबगाह में तमन्नाओं की तितली गुनगुनाती है।

मुड़ मुड़ कर देखना तुम्हें भाता तो है पर तुम्हारा मुझे तकना मस्तिष्क में खलबली मचा देता है।

गालों की लाली पर शर्म की सिलवटें मल जाती है,

तुम क्या जानों हर अंग अपना स्वामित्व खोते लज्जा के दायरे से लिपट जाते हैं।

देखो त्वचा के भीतर लहू जम रहा है तुम्हारी धधकती शख़्सीयत को छूकर,

तलाश करो मेरे भीतर मुझको मैं तुम होती जा रही हूँ।

दिमागी उर्वर को टटोल कर देखो मेरे संकोच का आवरण हटा दो,

मैं तुमसे बेइन्तहाँ प्यार करती हूँ 

ढूँढ लो ना मेरे अहसासों की आग 

तुम्हें उतरना होगा मेरे भीतर 

कहो कौनन से रस्ते जाओगे आँखों के या दिल के?


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