मेरी चाहतें
मेरी चाहतें
तेरे इश्क में जीने मरने की तलब लिए ,
आवारा सा तेरी गलियों में सुबह से शाम करता हूं।
नैनों की आगोश में समाए हुए,
खुद को तेरे ही लिए बदनाम करता हूं।
न जीने की तड़प और न ही मरने चाहत होगी तेरे बिना,
बस तुम्हारे साथ जीने का हर पल इंतजाम करता हूं।।
मेरी चाहतें अक्सर सबसे जुदा कर देती हैं,
पर तुमसे मिलने के लिए अक्सर जुल्म सरेआम करता हूं।
मुकम्मल कर सकूंगा हर फासला जिंदगी का,
गर संग मिला तुम्हारा तो ये ऐलान करता हूं।
तरन्नुम सजोए हैं तेरे नाम के बहुत से मैंने,
तुमसे मुकम्मल कराने का अक्सर ही काम करता हूं।
यूं ही बैर लिए बैठे हो तुम मेरी फितरत से,
मैं तो तुमसे इश्क सुबह से शाम करता हूं।।